गुरुवार, 20 मई 2010

आजकल लोगों में सामाजिक कार्यकर्ता बनकर घूमने का एक फैशन चल पडा है सफ़ेद कुर्ता,पजामा या जींस की पैंट डाल ली और निकल पड़े सड़क पर, किसी की कार में बैट्ठे बस पहुँच गए काफी हाउस में,जोर-जोर से चीखना ,भाषण देना शुरू,बाकी लोग-बाग़ हफ्ते -दो-हफ्ते में समझ जाते हैं की भाई साहेब या बहन जी जरूर नेता हैं या सोसलवर्कर हैं.क्या यह लोग कभी किसी मजदूर के साथ धूप में गिट्टी तोड़ते दिखाई दिए ,कभी पीने के पानी का कुआं खोदते,नहर बनाते,गंदे कपडे पहने बच्चों को नहलाते,गोद में उठाते,पढाते किसी बुजुर्ग को हस्पताल ले जाते,किसी को अत्याचार का शिकार होने से बचाते,किसी भूखे को अपने हिस्से की रोटी खिलते भी दिखाई देंगे या अपने कुरते की सफेदी ही बचाते मिलते रहेंगे और इत्र की खुशबू से महकते,तोता-मैना की तरह चहकते ही नजर आयेंगे.ऐसे मोडल सामाजिक कार्यकर्ताओं की वजह से लोग असलियत से नफ़रत करने लगे हैं.कृपा करें ये लोग ,अपना बहरुपियापन घर के अन्दर आईने तक ही रक्खें,इनकी वजह से आम आदमी एक सामाजिक,निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता को इन ही लोगों का रिश्तेदार समझ कर अपना दर्द नहीं कह पता और अपनी समस्याओं के साथ जूझता रहता है,अन्याय सहता रहता है.

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